Saturday, July 27, 2024

ग्रीन टी से तैयार होगी फंगलरोधी दवा

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देहरादून- उत्तराखंड के दून की ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी ने एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। यहां के वैज्ञानिकों ने ग्रीन टी से फंगल रोधी दवा तैयार की है। केंद्र सरकार ने इस नई खोज का पेटेंट ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के नाम दर्ज कर लिया है।विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलाजी विभाग के विज्ञानियों ने यह नया फार्मूला खोजा है। इस टीम में डा. जिगिशा आनंद, डा. निशांत राय और डा. आशीष थपलियाल शामिल रहे। डा. जिगिशा आनंद ने बताया कि इस फार्मूले के जरिये मानव शरीर में मौजूद रहने वाले अति सूक्ष्म जीव- कैंडिडा के कारण होने वाले रोगों का इलाज संभव है। कैंडिडा की वजह से शरीर के विभिन्न हिस्सों में फंगल इंफेक्शन हो जाता है। इसके उपचार के लिए एंटी फंगल दवाएं उपयोग में लाई जाती हैं।एंटी फंगल दवाओं की खुराक अधिक होने के कारण शरीर में प्रतिरोधक क्षमता में कमी, सांस लेने में परेशानी, उल्टी, दर्द, हाईपरटेंशन जैसी समस्याएं सामने आने की संभावना बढ़ जाती है। ग्रीन टी में मौजूद कैटकींस के साथ बहुत कम मात्रा एंटी फंगल दवा और धातु आयनों की सूक्ष्म मात्रा को मिलाकर यह नया फार्मूला तैयार किया गया है।

इनमें ज्यादा दिखता है कैंडिडा का संक्रमण

डा. निशांत राय ने बताया कि इस फार्मूले से एंटी फंगल दवाओं के मुकाबले बहुत तेजी और प्रभावी ढंग से कैंडिडा की वजह से होने वाले रोगों से निपटा जा सकता है। उन्होंने बताया कि कैंडिडा का संक्रमण नवजात शिशुओं, बुजुर्गों, महिलाओं, एंटीबायोटिक दवाओं की ज्यादा मात्रा लेने वालों, अंग प्रत्यारोपण कराने वालों को होता है। आमतौर से इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के विरुद्ध कैंडिडा में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, इस वजह से पारंपरिक उपचार अप्रभावी होने लगता है।
कैंडिडा विरोधी कई अवयवों को मिला बनाया है नया फार्मूला

नया फार्मूला कैंडिडा विरोधी कई अवयवों को मिलाकर बनाया गया है, इसलिए यह अधिक प्रभावी होने के साथ ही सुरक्षित भी है। ग्रीन टी का उपयोग होने के कारण उसमें मौजूद पालीफेनोल्स कैटकींस स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं और इनमें कैंसर विरोधी गुण विद्यमान हैं। ग्राफिक एरा ग्रुप के अध्यक्ष डा. कमल घनशाला ने विज्ञानियों को बधाई देते हुए इसे दुनिया के लिए बहुत उपयोगी बताया।उन्होंने कहा कि ग्राफिक एरा में टाइडफाइड को डायग्नोस करने की नई तकनीक और गन्ने के रस से मैम्ब्रेन बनाने जैसे अनेक आविष्कारों के बाद यह एक और ऐसी उपलब्धि है, जिसका पेटेंट यूनिवर्सिटी को मिला है। कुलपति डा. एचएन नागराजा ने बताया कि तमाम प्रयोगों और एक लंबी प्रक्रिया के बाद यह कामयाबी मिली है। वर्ष 2014 में इस खोज का पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया गया था। बीस वर्षों के लिए विश्वविद्यालय को यह पेटेंट दिया गया है।

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