चंद्रयान-3 ने कम लागत के अंतरिक्ष अभियानों में भारत की क्षमता सिद्ध कर दी है यह बात केंद्रीय अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इंदौर में बुद्धिजीवियों, प्रमुख नागरिकों और मीडियाकर्मियों के साथ एक परस्पर संवाद बैठक में अपने संबोधन में कहा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत के अंतरिक्ष मिशन कम लागत के लिए ही डिज़ाइन किए गए हैं। मंत्री महोदय ने आगे विस्तार से कहा कि “रूसी चंद्रमा मिशन, जो असफल रहा था, की लागत 16,000 करोड़ रुपये थी वहीं चंद्रयान-3 मिशन की लागत लगभग 600 करोड़ रुपये थी। आप गौर करें कि चंद्रमा और अंतरिक्ष मिशन पर आधारित हॉलीवुड फिल्मों की लागत भी 600 करोड़ रुपये से अधिक होती है।
डॉ. जितेंद्र सिंह, जो केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रधानमन्त्री कार्यालय (पीएमओ )कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन और परमाणु ऊर्जा राज्यमंत्री भी हैं, ने कहा कि हमने अपने कौशल के माध्यम से लागत की पूर्ति करना सीख लिया है।
“उन्होंने कहा कि अब प्रश्न उठेंगे, ऐसा कैसे हुआ? तो हमने गुरुत्वाकर्षण बलों का उपयोग किया, अंतरिक्ष यान ने पृथ्वी की लगभग 20 परिक्रमाएँ कीं और प्रत्येक परवलय (पैराबोला) में वह तब तक ऊपर उठा, जब तक कि वह बाहर निकल कर चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के नियन्त्रण में नहीं पहुंच गया और निर्धारित स्थान पर उतरने से पहले उसने चंद्रमा की 70-80 परिक्रमाएँ भी कीं”। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि अनुसंधान एवं विकास प्रयासों में निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी “अनुसंधान- राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन” विधेयक लेकर आए, जिसे संसद के पिछले सत्र में लोकसभा द्वारा पारित किया गया और जिसमें पांच वर्षों में के लिए 50 हजार करोड़ रुपये का बजट था। उन्होंने आगे कहा कि “जब इसे पूरी तरह से लागू किया जाएगा, तो यह बड़ा गेम-चेंजर होगा। हम एक अद्वितीय सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) की योजना बना रहे हैं, जिसके लिए अनुसंधान निधि का ₹36 हजार करोड़ निजी क्षेत्र, ज्यादातर उद्योग से आना है, जबकि सरकार इसमें 14 हजार करोड़ रूपये लगाएगी”।