Saturday, July 27, 2024

नम आंखो से हसीना ने उस दिन को किया याद, जब पिता समेत पूरे परिवार को उतारा गया था मौत के घाट

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नई दिल्ली. बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना ने रविवार को उस घटना का जिक्र किया जब वह अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान की हत्या करने वालों से बचने के लिए अपने बच्चों के साथ दिल्ली के पंडारा रोड में गुप्त रूप से रहती थीं. शेख हसीना ने उस समय को याद करते हुए यह भी बताया कि कैसे भारत सरकार ने उसकी मदद की पेशकश की, जबकि हत्यारे उसके परिवार के सभी सदस्यों को खत्म करना चाहते थे. नम आंखों के साथ शेख हसीना ने 1975 का वो साल याद किया जब उन्हें जर्मनी में अपने परमाणु वैज्ञानिक पति के साथ जुड़ने के लिए बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था. हसीना और उनकी बहन को विदा करने के लिए उस समय उनके परिवार वाले एयरपोर्ट पर आए थे. लेकिन यह विदाई उनके माता-पिता के साथ उनकी आखिरी मुलाकात साबित हुई.

शेख हसीना ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में बांग्लादेश के इतिहास के सबसे काले अध्याय को याद करते हुए कहा, “क्योंकि मेरे पति विदेश में थे, इसलिए मैं उसी घर में अपने माता-पिता के साथ में रहती थी. उस दिन हम सब वहीं थे, मेरे पिता, मां, मेरे तीन भाई, दो नवविवाहित भाभी, सब वहीं थे. यानी सभी भाई-बहन और उनके जीवनसाथी. वे हमें विदा करने के लिए एयरपोर्ट आए थे. हम वहां अपने माता पिता से मिले लेकिन हमारे मिलन का वह आखिरी दिन था. “

कुछ ही दिनों बाद 15 अगस्त 1975 को हसीना को अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान की हत्या की खबर मिली. उन्हें अपने परिवार के और सदस्यों की फांसी के बारे में भी पता चला. शेख हसीना ने कहा कि वास्तव में यह अविश्वसनीय था. यह इसलिए भी अविश्वसनीय है कि कोई बंगाली ऐसा कैसे कर सकता है. हम आज भी यह नहीं जानते कि वास्तव में हुआ क्या. केवल तख्तापलट हुआ और फिर हमने सुना कि मेरे पिता की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद हमें यह नहीं पता था कि आखिर हमारे परिवार के सभी सदस्य कहां थे. बाद में आप जानते हैं उन सबकी हत्या कर दी गई थी. ”

शेख हसीना ने कहा कि भारत पहला देश था जिसने मेरी मदद की. उन्होंने कहा, “तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने तुरंत सूचना भेजी कि वह हमें सुरक्षा और आश्रय देना चाहती हैं. मुझे विशेष रूप से यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो और इंदिरा गांधी की ओर से सुरक्षा देने का वादा किया गया. हमने दिल्ली आने का फैसला किया क्योंकि हमारे मन में था कि अगर हम दिल्ली जाते हैं तो वहां से हमें अपने देश जाने में आसानी होगी. और तब हम यह जान पाएंगे कि परिवार के कितने सदस्य अभी भी जीवित हैं.” इसके बाद शेख हसीना दिल्ली आईं और उन्हें भारी सुरक्षा के बीच रखा गया क्योंकि उनके पिता को मारने वालों ने अन्य रिश्तेदारों के घरों पर भी हमले किए और उसके कुछ रिश्तेदारों को मार डाला.

शेख हसीना ने कहा कि लगभग 18 सदस्य जिनमें ज्यादातर मेरे रिश्तेदार, कुछ नौकर और उनके बच्चे, कुछ अतिथि और मेरे चाचा शामिल थे, की हत्या कर दी गई. साजिशकर्ता चाहते थे कि बंगबंधु के परिवार का कोई भी व्यक्ति कभी सत्ता में वापस न आए. शेख हसीना ने उस घटना को याद करते हुए बताया, “जब हम दिल्ली आए तो शायद 24 अगस्त था. मैंने प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की. वहां हमें पता चला कि कोई जीवित नहीं है. फिर उन्होंने हमारे लिए सारा इंतजाम किया. मेरे पति के लिए नौकरी और पंडारा रोड के घर में रहने की व्यवस्था हुई. हम वहीं रुके थे.”

शेख हसीना ने बताया कि पहले का 2-3 साल वास्तव में बहुत मुश्किल था. मेरे बच्चे काफी छोटे थे. मेरा बेटा केवल 4 साल का था. मेरी छोटी बेटी रोती रहती थीं. वे सब मेरे माता पिता के पास जाने की जिद कर रहे थे. वे सब मेरे छोटे भाई को अब भी याद करते हैं.” शेख हसीना को दिल्ली में अपनी पहचान छुपाकर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था क्योंकि उनकी जान को खतरा था. वे यहां कई नामों से रहीं. बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के सदस्यों को 15 अगस्त, 1975 को सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने हत्या कर दी थी, जिसके बाद बांग्लादेश कई वर्षों तक राजनीतिक अराजकता और सैन्य शासन में रहा था.

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