उत्तराखंड में सबसे लोकप्रिय शैव धर्म स्थलों में से एक, केदारनाथ मंदिर 3,583 मीटर ऊंचा है, जो ऋषिकेश से लगभग 223 किमी दूर स्थित है। माना जाता है कि मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित, केदारनाथ मंदिर को गुरु आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी ईस्वी में बनवाया था।



नैना देव
नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गई है।
नीम करौली
उत्तराखंड के नैनीताल के पास स्थित बाबा नीम करौली के प्रसिद्ध कैंची धाम की लोगों में बहुत मान्यता है. 15 जून को ही बाबा के मंदिर का निर्माण कराया गया था. कैंची धाम आश्रम में हनुमानजी और अन्य मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा 15 जून को अलग-अलग वर्षों में की गई थी
हनुमान धाम
नैनीताल जिले के रामनगर में हनुमान धाम इस मंदिर में बजरंग बली के 9स्वरूपों और 12 लीलाओं के दर्शन होते हैं. यह एक इच्छापूर्ति तीर्थ धाम है, जहां हनुमान जी के सामने अपनी मनोकामना लिखकर रखने से भक्तों की सभी मन्नतें जरूर पूरी हो जाती हैं. यह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां एक साथ बजरंग बली के 9 रूपों और उनकी 12 लीलाओं के दर्शन होते हैं.
पूर्णागिरी मन्दिर
पूर्णागिरी मन्दिर स्थान चम्पावत से ९५ कि॰मी॰की दूरी पर तथा टनकपुर से मात्र २५ कि॰मी॰की दूरी पर स्थित है। इस देवी दरबार की गणना भारत की ५१ शक्तिपीठों में की जाती है। शिवपुराण में रूद्र संहिता के अनुसार दश प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया गया था। एक समय दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु शिव शंकर का अपमान करने की दृष्टि से उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। सती द्वारा अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन न होने के कारण अपनी देह की आहुति यज्ञ मण्डप में कर दी गई।