Monday, December 4, 2023
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प्राचीन समय से चले आज भी वैसे ही है उत्तराखंड के ये प्रमुख मंदिर .

केदारनाथ मंदिर 

उत्तराखंड में सबसे लोकप्रिय शैव धर्म स्थलों में से एक, केदारनाथ मंदिर 3,583 मीटर ऊंचा है, जो ऋषिकेश से लगभग 223 किमी दूर स्थित है। माना जाता है कि मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित, केदारनाथ मंदिर को गुरु आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी ईस्वी में बनवाया था।


बद्रीनाथ मंदिर 
“जो जाए बद्री,वो न आए ओदरी”यानि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता। प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से छूट जाता है।यह तीर्थ हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है। यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है।
Badrinath Temple | Never Ever Seen Before
गंगोत्री मंदिर 
गंगोत्री का गंगाजी मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है।
 धारी 
श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहां हर दिन एक चमत्कार होता है, जिसे देखकर लोग हैरान हो जाते हैं। दरअसल, इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है। यह नजारा वाकई हैरान कर देने वाला होता है इस मंदिर को धारी  देवी के नाम से जाना जाता है
Dhari Devi Temple - Deeray Travels
मनसा देवी
मां मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री और नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि जो भी मां मनसा के प्रसिद्ध शक्तिपीठ हरिद्वार में आता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. हरिद्वार से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर शिवालिक पहाड़ियों के बिलवा पहाड़ में मां मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है
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कार्तिक स्वामी मंदिर
कार्तिक स्वामी मंदिर की ख़ास बात यह है कि क्रोंच पर्वत की छोटी पर स्तिथ यह राज्य का एकमात्र कार्तिकेय का मंदिर है। इसी वजह से साल के बारह महीने यहाँ भक्तों का आना लगा रहता है।

नैना देव

 नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। 1880 में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्‍थापना की गई है।

 

 

नीम करौली

उत्तराखंड  के नैनीताल के पास स्थित बाबा नीम करौली के प्रसिद्ध कैंची धाम की लोगों में बहुत मान्यता है. 15 जून को ही बाबा के मंदिर का निर्माण कराया गया था. कैंची धाम आश्रम में हनुमानजी और अन्य मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा 15 जून को अलग-अलग वर्षों में की गई थी

 

Neem Karoli Baba -Devotee Of Lord Hanuman |Yogabicep

 

हनुमान धाम

नैनीताल जिले के रामनगर में हनुमान धाम इस मंदिर में बजरंग बली के 9स्वरूपों और 12 लीलाओं के दर्शन होते हैं. यह एक इच्छापूर्ति तीर्थ धाम है, जहां हनुमान जी के सामने अपनी मनोकामना लिखकर रखने से भक्तों की सभी मन्नतें जरूर पूरी हो जाती हैं. यह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां एक साथ बजरंग बली के 9 रूपों और उनकी 12 लीलाओं के दर्शन होते हैं.

पूर्णागिरी मन्दिर

पूर्णागिरी मन्दिर  स्थान चम्पावत से ९५ कि॰मी॰की दूरी पर तथा टनकपुर से मात्र २५ कि॰मी॰की दूरी पर स्थित है। इस देवी दरबार की गणना भारत की ५१ शक्तिपीठों में की जाती है। शिवपुराण में रूद्र संहिता के अनुसार दश प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया गया था। एक समय दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु शिव शंकर का अपमान करने की दृष्टि से उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। सती द्वारा अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन न होने के कारण अपनी देह की आहुति यज्ञ मण्डप में कर दी गई।

Image result for Punyagiri Temple. Size: 151 x 104. Source: www.templepurohit.com

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