26 September, 2023
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देव आनन्द उर्फ़ धरमदेव पिशोरीमल ,महान अभिनेता, फिल्म निर्माता और भारतीय सिनेमा के दिल की धड़कन देव आनंद, बॉलीवुड इतिहास के इतिहास में सोने में अंकित एक नाम है। उनका उल्लेखनीय करियर छह दशकों से अधिक समय तक फैला रहा, जिसके दौरान उन्होंने भारतीय सिनेमा पर एक अमिट छाप छोड़ी। यह जीवनी आपको उनके जीवन की यात्रा पर ले जाएगी, उनके शुरुआती दिनों से लेकर उनकी स्थायी विरासत तक।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
26 सितंबर, 1923 को गुरदासपुर, पंजाब, भारत में जन्मे देव आनंद का मूल नाम धरम देव पिशोरिमल आनंद था। उनके प्रारंभिक वर्षों के दौरान उनका परिवार लाहौर चला गया। देव एक उत्कृष्ट छात्र थे और उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में डिग्री हासिल की। अपने कॉलेज के दिनों के दौरान ही उन्हें अभिनय के प्रति अपने जुनून का पता चला और वह कॉलेज के थिएटर ग्रुप में शामिल हो गए।
बंबई की यात्रा (मुंबई)
देव की स्टारडम की यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने 1940 के दशक की शुरुआत में फिल्मों में अपना करियर बनाने के लिए बॉम्बे (अब मुंबई) जाने का जीवन बदलने वाला निर्णय लिया। फिल्म उद्योग में उनका पहला कदम प्रभात फिल्म कंपनी में क्लर्क के रूप में था। हालाँकि, उनकी महत्वाकांक्षाएँ कॉफ़ी लाने और पत्र टाइप करने से कहीं अधिक बड़ी थीं। उन्होंने जल्द ही फिल्मों में अपनी जगह बना ली और 1946 में फिल्म “हम एक हैं” से अपने करियर की शुरुआत की।
स्टारडम और प्रतिष्ठित फिल्में
देव आनंद का स्टारडम तेजी से बढ़ा। 1950 में, उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी, नवकेतन फिल्म्स की स्थापना की, जिसने उनकी कई प्रतिष्ठित फिल्मों का निर्माण किया। उन्हें अक्सर आकर्षक अभिनेत्री सुरैया के साथ जोड़ा जाता था, और “अफसर” (1950) और “जीत” (1949) जैसी फिल्मों में उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री प्रसिद्ध हो गई।
हालाँकि, 1950 और 1960 के दशक में देव आनंद वास्तव में एक सुपरस्टार के रूप में सामने आए। “सी.आई.डी.” जैसी फ़िल्में (1956), “पेइंग गेस्ट” (1957), और “गाइड” (1965) ने एक अभिनेता के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उनके छोटे भाई विजय आनंद द्वारा निर्देशित “गाइड” उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है। फिल्म में एक विवादित टूर गाइड का चित्रण भारतीय सिनेमा का क्लासिक बना हुआ है।
देव आनंद: द स्टाइल आइकन
देव आनंद सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे; वह एक स्टाइल आइकन थे। उनके सिग्नेचर पफ हेयरस्टाइल, क्रिस्प ड्रेसिंग सेंस और व्यवहार ने ऐसे ट्रेंड सेट किए जिनका उनके प्रशंसकों ने अनुकरण किया। ऑन-स्क्रीन और ऑफ-स्क्रीन उनकी करिश्माई उपस्थिति ने उन्हें बड़े पैमाने पर प्रशंसक बना दिया।
व्यक्तिगत जीवन
देव आनंद का निजी जीवन अपेक्षाकृत निजी था। उनका विवाह “बाजी” (1951) और “टैक्सी ड्राइवर” (1954) जैसी फिल्मों में उनकी सह-कलाकार कल्पना कार्तिक से हुआ था। उनके दो बच्चे थे, सुनील आनंद और देविना आनंद। उनका परिवार जीवन भर उनके समर्थन का स्तंभ बना रहा।
भारतीय सिनेमा पर प्रभाव
भारतीय सिनेमा पर देव आनंद का प्रभाव उनके अभिनय करियर से कहीं आगे तक है। वह सिर्फ एक अभिनेता ही नहीं बल्कि एक फिल्म निर्माता और निर्माता भी थे जिन्होंने उद्योग में नई प्रतिभाओं को पेश किया। उनका प्रोडक्शन हाउस, नवकेतन फिल्म्स, प्रयोग और कलात्मक अभिव्यक्ति का एक मंच था। वह सीमाओं को तोड़ने में विश्वास करते थे और अक्सर नए निर्देशकों और लेखकों के साथ काम करते थे।
बाद में कैरियर और विरासत
जैसे-जैसे देव आनंद की उम्र बढ़ती गई, फिल्म निर्माण और अभिनय के प्रति उनका जुनून कम होता गया। उन्होंने 80 के दशक तक फिल्मों में अभिनय करना जारी रखा। उनकी बाद की कुछ उल्लेखनीय फिल्मों में “हम नौजवान” (1985) और “सौ करोड़” (1991) शामिल हैं।
देव आनंद ने 3 दिसंबर 2011 को 88 साल की उम्र में इस दुनिया को छोड़ दिया, लेकिन उनकी विरासत कायम है। वह सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे; वह एक सांस्कृतिक प्रतीक थे। उनकी फिल्में, गाने और शैली दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती रहती हैं और वह अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।
देव आनंद का जीवन जुनून, दृढ़ता और भारतीय सिनेमा में उत्कृष्टता की निरंतर खोज से चिह्नित एक यात्रा थी। उन्हें हमेशा “सदाबहार हीरो” के रूप में याद किया जाएगा जिन्होंने लाखों लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई और बॉलीवुड पर एक अमिट छाप छोड़ी।